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स‌ुलगते कश्मीर स‌े खामोश पैगाम, देश के हर नागिरक स‌े गुजारिश है, प्लीज! इसे जरूर पढ़ें

- अनुराग आर्य

मेरे कश्मीर यात्रा के दौरान श्रीनगर की तीन मेडिकल छात्राओं ने मुझसे पूछा था कि भारत में बैठा आम नागरिक क्यों हमारी आवाजों को नहीं सुनता? मैंने उनसे कहा "इसलिए क्यूंकि उन्हें लगता है जब एक लाख से ज्यादा लोगो को यहाँ से भगाया जा रहा था तब आप चुप बैठे थे? उन्हें ये मेसेज गया आप सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगो का समूह बनाना चाहते हैं आपकी ओर से, आवाम की ओर से या आपके नुमाइन्दों की ओर से कभी उनकी वापसी के लिए किसी भी मंच से कोई स्ट्रॉन्ग मैसेज नहीं गया. क्यों? इससे ये मान लिया गया कि आप भी इसमें मौन सहमति रखते है ..डॉयलॉग प्रोसेस में जो सबसे बड़ा "ब्रीच" है वो यही है.

उनमें से एक बोली "पर वहां अल्पसंख्यकों के साथ सौतेला व्योवहार होता है, इसलिए हम पाकिस्तान के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं. मैंने उनसे पूछा "क्या वे जानती है हिन्दुओ के बाद देश बड़ी आबादी उनके मजहब की है?" मैंने फिर पूछा क्या वे फिल्मे देखती हैं? 
उन्होंने कहा "हाँ"
मैंने उनसे पूछा उनके फ़ेवरेट एक्टर कौन है?
एक ने कहा "शाहरुख़ "दूसरी ने "आमिर" का नाम लिया तीसरी ने "हृतिक रोशन" का.
मैंने उनसे पूछा क्या तुम्हें इन तीनों की बीवियों के नाम पता हैं?
उन्होंने "हाँ "में सर हिलाया.
मैंने कहा खानों की बीविया हिंदू है ओर रोशन की बीवी मुस्लिम.

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मैंनें उनसे पूछा क्या उन्होंने कलाम का नाम सुना है? क्या वे किसी रईस परिवार के बच्चे थे, जो आसानी से राष्ट्रपति के पद पर पहुँच गए गये? निसंदेह हमारा लोकतंत्र आदर्श नहीं है. इसमें कई कमियां है. छतीसगढ़, मणिपुर और दूसरी तमाम जगहों में बहुत कुछ ऐसा है, जिसे ठीक करने की जरूरत है. वहां के लोगों को भी लगता है दुःख भौगोलिक हो गया है. ये भी सच है किसी भी क्षेत्र में जब कोई सैन्य बल आता है तो वो अपने साथ कई असामान्य दुखद अलोकतांत्रिक चीज़ें साथ लेकर आता है...किसी अशांत क्षेत्र को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. पर कोई तो कारण होता है जो एक देश अपने ही एक हिस्से में किसी एक क्षेत्र विशेष में सेना भेजता है? वो रेंडमली चूज़ नहीं करता. वो बंगाल में क्यों नहीं भेजता? बिहार में क्यों नहीं? बावजूद इसके फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो लोकतांत्रिक है ! 

दिल पर हाथ रखकर कहो तुमने पकिस्तान में ऐसा सुना है कि वहां कोई अल्पसंख्यक लोगों के दिलो पर राज करता हो? वहां अल्पसंख्यक वर्ग के एक बड़े हिस्से की मीडिया, सरकार, पार्टियों में भागेदारी है? दोनों देशो में अल्पसंख्यकों की आबादी का अनुपात किस देश में घट रहा है ओर किस देश में बढ़ रहा है? क्या इससे तुम्हें नहीं लगता कि अपनी तमाम कमियों के बावजूद भारत एक आदर्श नहीं फिर भी एक लोकतान्त्रिक देश है?
क्या वे पकिस्तान की अर्थ व्यवस्था से वाकिफ हैं?
वहां शिक्षा के हालात से?
वहां स्त्रियों के हालात से?
ईश निंदा कानून से?
क्यों वे आत्महत्या की तरफ खड़े एक देश को चुन रही हैं, जहाँ आतंकवाद एक इंडस्ट्री है. विश्व में उसकी सबसे बड़ी फैक्ट्री. गृह युद्ध में उलझे !

उनमें से एक बोली गर वे पकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहें. "आज़ाद" होना चाहें?
मैंने उनसे पूछा क्या तुम जानते हो एक स्वतन्त्र देश कैसे चलता है? उसको चलाने के लिए अर्थव्यवस्था के कुछ साधन होते हैं? क्या तुम आश्वस्त हो कि तुम्हारे आज़ाद होने के बाद चीन या पकिस्तान तुम पर कब्ज़ा नहीं करेगा? चलो मान लिया नहीं करता. पर क्या तुम आश्वस्त हो कि आज़ाद होने के बाद एक ऐसी व्यवस्था दे पाओगे जिसमें सब प्रसन्न रहें? वो एक भष्टाचार मुक्त आदर्श शासन होगा और समाज के आखिरी तबके को न्याय मिलेगा? समाज के सभी वर्गों को? क्या आज़ाद होने के बाद अगर तुम्हारा कोई हिस्सा नाराज हो तो क्या तुम उसे स्वतंत्र कर दोगे?
तुम अपने घर के नाराज बच्चे को मनाने का प्रयत्न नहीं करते? या उसे घर छोड़कर जाने देते हो?
क्यों नहीं तुम लोग स्वयं हिस्सेदारी करके अपनी सरकार चुनो, अपने बाशिंदे शामिल करो और उन चीज़ो को दुरस्त करो जहाँ-जहाँ तुम्हें खामियां लगती हैं। व्यवस्था हाथ में लोकतान्त्रिक तरीके भी तो हैं !

"मेरा भाई लापता है 9 साल से वो 18 का था, क्रिकेट खेलने गया था पढ़ने में होशियार, पुलिस उठा ले गयी थी !
उनमे से एक बोली थी. 
"मेरे मामू भी " दूसरी बोली. 
पुलिस से पूछने जाओ, भगा देती है ,सरकार सुनती नहीं !
मै सुन्न हो जाता हूँ !

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"आपने टूल्स देखे हैं इस्तमेमाल होते" आर्मी का वो ऊँचे रैंक का अफसर दोस्त मुझसे कहता है. 
हम वो टूल्स है, ख़राब होते हैं, बदल दिए जाते है, सवाल पूछने की हिदायत नहीं है ! देशभक्ति ड्यूटी है हमारी ! कौन चाहता है अपने देशवासियो पे गोली चलाना?
वो अखबार उठाता है, जहाँ देश की एलीट बुद्धिजीवी समझी जाने वाली एक मोहतरमा ने जवानों की गोलीबारी खिलाफ लिखा है। 

"आज के एक एंगल" पे कैमरा रखने पर उससे जो दिखता है तस्वीर मुकम्मल नहीं दिखाता सेना का वो जवान, जो एक अनजान प्रदेश से वहां आया है. उसके आसपास कोई भी ऐसा इन्सान नहीं है, जो उसे पसंद करता है. लोग उसे इंडियन डॉग कहकर गाली भी दे देते हैं. उसे एक ऐसे एरिये में घंटों खड़ा रहना पड़ता है. इस सख्त हिदायत के साथ कि गोली या बल प्रयोग जब तक आवश्यक हो, नहीं करना. वो घंटों वहां खड़ा रहता है. उसे कोई पानी को भी नहीं पूछता. वो किसी पर यकीन नहीं कर सकता. 14 साल के बच्चे से लेकर औरतें तक बम विस्फोट कर सकती हैं. सोते वक़्त भी उसे मुस्तैद रहना पड़ता है. उसने अपने उन साथियों के अपनी आँखों के सामने चीथड़े उड़ते देखे हैं, जिनसे वो अभी एक महीने पहले मिला था. उसे याद है पिछली बार उसके तीन साथी जब मरे थे तो पूरा भारत किसी क्रिकेट मैच की जीत के जश्न में डूबा हुआ था. उसके एक साथी पर जांच चल रही है क्योंकि वो दो रातो से सोया नहीं था दो दिन पहले ही पत्थर बाज़ी ने उसके माथे को दर्द से भर रखा था. उसके दाएं कान ने सुनना बंद कर रखा था. इस बार की पत्थरबाज़ी ने उसका सब्र छीन लिया था. उसने गुस्से में गोली चला दी थी. भीड़ में एक 19 साल का लड़का था .

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मेरी रेजिमेंट का तीसरा जवान है, जिसके बाएं पैर में गोली लगी है और जिस वक़्त मै आपके साथ बैठा हूँ उसके पैर को एम्पूटेट होने के लिए उसके ब्लड टेस्ट हो रहे थे. उसकी शादी हुए अभी छह महीने हुए है. उसकी आवाज "हम देश के लिए मर रहे है ओर कोई हमारे दुःख में शामिल होने नहीं आता. बस उसका गला रुंधा नहीं है."  किसका देश? कैसा देश, कहाँ है देश? मैं देश ढूंढ रहा हूँ ! [अगर आप भी लिखना चाहते हैं कोई ऐसी चिट्ठी, जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो हमें लिख भेजें- merekhatt@gmail.com. हमसे फेसबुकट्विटर और गूगलप्लस पर भी जुड़ें]
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