Top Letters
recent

कश्मीर पर ठहर कर सोचने का वक्त है, आखिर हमारी सेना किसके खिलाफ़ लड़ रही है?

- नितिन ठाकुर
ये चुटकुला नहीं है इसलिए इस पर लाइक कम आएंगे। कोई बात नहीं। ज़रूरी बात फिर भी लिखी जानी चाहिए। सुनने वाला हो ना हो लेकिन कहने का फर्ज़ पूरा किया ही जाना चाहिए। आप बिन पढ़े कृपया लाइक करके अहसान भी ना करें क्योंकि मुझे वाकई जानने में दिलचस्पी है कि मेरी बात कितने लोगों ने वाकई पढी। कश्मीर में हिज्बुल का 21 वर्षीय कमांडर बुरहान वानी मारा गया।

बुरहान बाकी आतंकियों की तुलना में ज़्यादा नामी चेहरा था। वजह यही सोशल मीडिया। वो अक्सर लादेन के स्टाइल में चुनौती देते हुए वीडियो अपलोड करता था। एक वीडियो तो पिछले दिनों चैनलों पर भी चला। उसमें वो इंडियन आर्मी पर हमला करने का आह्वान कर रहा है। कश्मीर पुलिस को अपने साथ मिल जाने की दावत दे रहा है। कश्मीरी हिंदुओँ को वापस घर लौट आने के लिए कह रहा है। ये भी कह रहा है कि अमरनाथ जाने वाले यात्रियों पर हम हमला नहीं करेंगे क्योंकि वो सिर्फ अपने धार्मिक रिवाज़ को निभा रहे हैं। वो कश्मीर को आज़ाद कराना चाहता था।

कुछ ही दिनों पहले एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए हिंदुस्तान टाइम्स की हरिंदर बावेजा कश्मीर में बुरहान के घर पहुंची । बुरहान के पिता ने साफ कहा कि इस्लाम, कुरान और मुहम्मद साहब पहले हैं, बेटा बाद में। मतलब यही कि अगर बेटा मर भी गया तो ग़म नहीं। वो सचमुच मर ही गया। यकीनन ग़म और गुस्सा दोनों है इसलिए पुलवामा, अनंतनाग और शोपियां में कर्फ्यू है। उसके लिए लगने वाले नारे धार्मिक भी हैं और कश्मीर की आज़ादी के राजनीतिक रंग में रंगे भी।

इसे भी पढें...
'जवानों ने मेरी 13 साल की बहन को मेरी आँखों के सामने हवस का शिकार बनाकर मार डाला'

ये अजीब सा कॉकटेल है जिसका नशा कश्मीरियों पर वक्त गुज़रने के साथ हावी हो रहा है। हिंदुस्तान टाइम्स की ही एक डॉक्यूमेंट्री बता रही है कि साल 2013 में अगर 31 स्थानीय लड़के बंदूक थामते थे तो 2015 में ये आंकड़ा 66 हो गया है। आंकड़े का स्रोत जम्मू-कश्मीर की पुलिस है। अब सवाल आपसे है.. अगर तीन दशकों में भारतीयों का अकूत पैसा और सेना झोंक कर भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद खत्म करना तो दूर जहां का तहां थाम भी नहीं सकी तो फिर क्या कहीं कोई गलती नहीं हो रही है?

अगर हर आतंकी की शवयात्रा के बाद आम कश्मीरी सड़कों पर उतर रहा है तो कब तक हम इन प्रदर्शनों को पाकिस्तानी साज़िश का नाम देकर अपनी पॉलिसीज़ को जस्टिफाई करते रहेंगे? एनकाउंटर में आर्मी के अफसरों का कोर्टमार्शल भी पुरानी बात नहीं हुई। गूगल कीजिए और पढ़िए कि भारतीय सेना के बेशक सब नहीं लेकिन कुछ जवान वहां पहरा देने के साथ-साथ और भी बहुत कुछ करते पाए गए हैं।

जनरल वीके सिंह ने भी तो बताया था कि कश्मीर में नेताओं को अलग से भी पैसा दिया जाता है। वो क्यों दिया जाता है ये बात भारत सरकार में मंत्री बनने के बाद वो अब खुलकर बताएँगे इसमें मुझे संदेह है। मुझे माफ कीजिएगा क्योंकि इतने लंबे लेख में मैंने टेक्निकल होकर अब तक ये नहीं बताया कि क्यों कश्मीर को भारत का हिस्सा होना चाहिए या क्यों आज़ाद रहना चाहिए या कैसे हरि सिंह से हस्ताक्षर लिए गए या कबायली श्रीनगर की छाती पर चढ़ आए वगैरह वगैरह.. जैसा कि कश्मीर आधारित हर लेख में ढूंसने का रिवाज़ है।

इसे भी पढ़ें...
स‌ुलगते कश्मीर स‌े खामोश पैगाम, देश के हर नागिरक स‌े गुजारिश है, प्लीज! इसे जरूर पढ़ें

मैं तो बस सरकार से कश्मीर नीति पर एक पुनर्विचार चाहता हूं जिसे वो करेगी नहीं.. कुछ वैचारिक हठ में और कुछ सालों से तयशुदा नीति पर चलने की मजबूरी में। कश्मीर पर आधारित कोई भी रिपोर्ट उठाकर पढ़ना-सुनना शुरू कीजिए..मालूम पड़ेगा कि आक्रोशित लोग भारत में कहीं मुसलमान के खिलाफ हुई घटना या कश्मीर में सेना के हाथों हुई नाइंसाफी को 'नई मिलिटेंसी' की वजह बताते हैं। जी हां, नई मिलिटेंसी। ये वो मिलिटेंसी है जो परंपरागत मिलिटेंसी से  चार कदम आगे है।

अब गोली चलानेवाले सरहद पार से नहीं आते। खासे अच्छे घरों से ताल्लुक रखनेवाले और आधुनिक तालीम से लैस कम उम्र के कश्मीरी लड़के अब सीधे सुरक्षाबलों पर धावा बोलते हैं और अपने फोटो-वीडियो सोशल साइट्स पर डालते हैं। बुरहान यही करता था इसलिए कश्मीर के छोटे-छोटे बच्चों का रॉबिनहुड बन गया। बाजार का नियम मिलिटेंसी पर भी हावी है.. जो दिखता है वो बिकता है। क्या सरकार कश्मीर में बढ़ रहे इस नए मिलिटेंसी संक्रमण को रोक लेगी? मुश्किल है.. क्योंकि पाकिस्तान का पैसा, स्थानीय लोगों का समर्थन (चूंकि अब तो उनके अपने बच्चे ही बंदूक उठाए खड़े हैं), मज़हबी जुनून और मुल्क (उनकी नज़र में कश्मीरियत) की आज़ादी का जोश उन्हें पहले से ज़्यादा पागल बनाए दे रहा है। कहने की ज़रूरत नहीं कि इससे वो सिर्फ अपना घर जला रहे हैं लेकिन तब तक नहीं समझेंगे जब तक सब राख ना हो जाए।

दूसरी तरफ एक और कश्मीर है.. उसे हम बलूचिस्तान के नाम से जानते हैं। पाकिस्तान दशकों से उससे निपट रहा है। विभाजन के कई सालों बाद बलूचिस्तान पाकिस्तान के साथ आया था और वो भी हज़ार जटिलताओं के साथ। कश्मीर के साथ भारत का नाता जितना पेचीदा है उतना ही पाकिस्तान का बलूचिस्तान से रिश्ता है। थोड़ा फर्क यही है कि भारत ने कश्मीर पर हवाई हमले करके उदार लोकतंत्र होने का वहम बनाए रखा है जबकि पाकिस्तान के साथ ऐसा कोई नैतिक धर्मसंकट नहीं। वो जमकर बम गिराता है और जैसे जी चाहे वैसी ज़्यादती बलूचों के साथ करता है।

ह्यूमन राइट्स का आंकड़ा बताता है कि 2011 में तीन सौ से ज्यादा बलूचों को कत्ल कर दिया गया वहीं दर्जनों का अतापता नहीं। वैसे पाकिस्तान का मीडिया इस संख्या को लाखों में बताता है। बम धमाके होना और हजारों लोगों का मारा जाना भी वहां आम है। अब तो खैर 2016 चल रहा है और बदकिस्मती से हालात खऱाब ही हो रहे हैं। 85 फीसदी आबादी के पास वहां पानी नहीं है, 80 फीसदी के पास बिजली नहीं है और 70 फीसदी बलूची बच्चे स्कूल से बाहर घूम रहे हैं। अब ये भी सुन लीजिए कि अकेेले 2011 में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर 27 अरब रुपए का पैकेज खर्च किया लेकिन हालात सुधरे नहीं। हिंदुस्तान की तरह पाकिस्तान में भी पैकेज पॉलिटिक्स चलती है। हाल ही में पीएम मोदी ने भी कश्मीर को पैकेज की घोषणा की थी।

इसे भी पढ़ें...
'उनमें से एक लड़की ने पूछा, आप तो हमसे ये जानना चाहेंगी कि हम पत्थरबाज क्‍यों हैं?' 

बहरहाल पाकिस्तान में बलूचिस्तान के विद्रोहियों को दबाने के लिए पांच असफल फौजी ऑपरेशन अंजाम दिए जा चुके हैं। अमेरिका खुद बलूचिस्तान के मामलों पर फिक्र जताता रहा है।  वैसे आपको पता होना चाहिए कि बलूचों के सारे बड़े नेता विभाजन के बाद भारत के साथ रहना चाहते थे। इसी वजह से आज भी पंजाब और सिंध का पाकिस्तानी बलूचों पर भरोसा नहीं करता और बलूच खुद को भारत के करीब मानते हैं। पाकिस्तान सरकार को तो पूरा भरोसा है कि बिना रॉ के समर्थन के बलूचिस्तान में विद्रोही गुट चल ही नहीं सकते। बलूचों के संगठन पाकिस्तान के लिए आतंकी हैं। पाक आर्मी के हमले के बाद चंद मिनटों में दम तोड़ देनेवाला एक बलूच आखिरी पलों में क्या कह रहा है ये देखकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए। वो अपनी मां से बता कर मर रहा है कि मैं देश के लिए लड़कर शहीद हो रहा हूं। मेरे बच्चे मुझ पर फख्र करेंगे।

साफ पता चल रहा है कि कश्मीर और बलूचिस्तान अभी और जूझेंगे..दोनों देश की सरकारें अभी और तिलमिलाएंगी। दोनों ही समझ नहीं पा रहे कि यदि इन जगहों पर विद्रोह बढ़ने लगा है तो ज़रूरत अब रुक कर विचार करने की भी है। सिर्फ पैसा फेंककर, हथियारों से दबाकर और पड़ोसी के सर इल्ज़ाम रखकर किसी भी कौम को आप आखिर कब तक दबाए रख सकेंगे? [अगर आप भी लिखना चाहते हैं कोई ऐसी चिट्ठी, जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो हमें लिख भेजें- merekhatt@gmail.com. हमसे फेसबुकट्विटर और गूगलप्लस पर भी जुड़ें]

Myletter

Myletter

Powered by Blogger.