-सुबोध राय
प्यारे इरफान भाई,
मैं इस बार न इफ्तार में आ पाया। न तुम्हें खुलकर ईद की मुबारकबाद दे पा रहा हूं। देश बदल गया है। इसलिए मैं भी बदल गया हूं। अम्मी से कहना मैं उनके हाथ की बिरयानी खाने इस बार नहीं आऊंगा। उनका दिल रखने के लिए मेरी तरफ से उनकी बिरयानी की तारीफ कर देना। ईद के दिन मेरी पार्टी ने अहम मीटिंग रखी है। पार्टी का मानना है कि नेताओं का इफ्तार पार्टी में जाना तुष्टिकरण है। ईद की बधाई देना और मुसलमानों से गले मिलना भारतीय संस्कृति के खिलाफ है।
सब बदल गया है मेरे दोस्त। याद है न पहले तू स्कूल में हे शारदे मां वाली प्रेयर कैसे फट हाथ जोड़कर कर लेता था। मुझसे अच्छा भोजन मंत्र तो तुझे आता था। हिंदी की किताब में परशुराम संवाद वाला चैप्टर तू कैसे तोते की तरह सुना दिया करता था। रसखान से लेकर जायसी तक सबका तूने रट्टा लगा रखा था। एक बात बता क्या तूझे कभी नहीं लगा कि तू हिंदू राष्ट्र टाइप माहौल में जी रहा है।
तू बड़ा सहनशील निकला यार। मेरा नेता भगवा पहनता है। तूझे पता है ऐसी स्पीच देता है कि मेरा तो खून खौल जाता है। मुसलमानों से नफरत होने लगती है। लेकिन फिर तेरा चेहरा ध्यान आ जाता है। सारा गुस्सा छू मंतर हो जाता है। यार तूझे जब भी मेरे नेता लोग दूसरे मुल्क भेजेंगे न मैं अपने नेता से परमिशन लेकर तेरे साथ चलूंगा। ईद मुबारक। ख्याल रखना। कोई दिक्कत हो तो बताना तेरा दोस्त बड़ा नेता हो गया है अब।
तुम्हारा दोस्त
पदाधिकारी, हिंदू जागृति एवं गौरक्षा दल