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योगी जी, मैं लगातार देख रहा हूं कि यूपी पुलिस की शैली आपकी सरकार की छवि के लिए खतरनाक साबित हो रही है

सेवा में,

श्री योगी आदित्यनाथ,

मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार।

महोदय,

मैं उत्तर प्रदेश सरकार की छवि को लेकर बेहद चिंतित हूं। निश्चित रूप से आप भी सरकार की छवि को लेकर बेहद संवेदनशील होंगे और सोच रहे होंगे कि इस तरह की स्थिति क्यों पैदा हो रही है कि सरकार को आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है और सोशल मीडिया पर लोग सरकार के खिलाफ़ लिख रहे हैं? मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि आपके पास मीडिया रिलेशन और कम्युनिकेशन की बेहतरीन टीम होगी। इस तरह की टीम होने के बावजूद भी पुलिस के एक्शन से सरकार को बदनामी का सामना क्यों करना पड़ रहा है? क्या पुलिस विभाग के पास, जो मीडिया रिलेशन एंड कम्युनिकेशन की टीम है, पुलिस विभाग कोई सलाह और मशविरा नहीं करती है। वे किसी संवेदनशील मामले में कदम उठाने से पहले अपने कम्युनिकेशन टीम से सलाह नहीं करते कि इसका क्या दूरगामी प्रभाव होगा और पुलिस प्रशासन के साथ - साथ सरकार की छवि पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या पुलिस की इतनी मनमानी है कि वो अमिताभ ठाकुर जैसे कद के व्यक्ति को भी उठाने से पहले आपसे निर्देश प्राप्त नहीं करती? आपकी कम्युनिकेशन टीम की जानकारी में जब ऐसी बात आती है तो वह कुछ भी लाभ - हानि नहीं बताती है, इस तरह की कार्रवाई को लेकर। सरकार या किसी संगठन की छवि ही सब कुछ होती है लेकिन मैं लगातार देख रहा हूं कि आपकी पुलिस की कार्रवाई की शैली और कम्युनिकेशन टीम की शिथिलता आपकी सरकार की छवि के लिए खतरनाक साबित हो रही है।

हाल के अमिताभ ठाकुर के मसले पर बात करने से पहले उत्तर प्रदेश की पुलिस द्वारा पत्रकार प्रशांत कन्नौजिया, गोरखपुर के डॉ. कफील अहमद, मिर्जापुर के एक स्थानीय पत्रकार पवन जायसवाल द्वारा mid-day meal रिपोर्ट करने पर पुलिस की मनमाना कार्रवाई के बारे में बात करते हैं। इन सभी मामलों में पुलिस ने बिना तथ्यों को जाने और समझे और बिना उचित जांच किए एकतरफा और मनमाने ढंग से कार्रवाई की। इनका नतीजा क्या निकला? सरकार की मिडिया और सोशल मीडिया से लेकर अदालतों तक में मानमर्दन हुआ। अदालत ने कफील अहमद वाले मामले में सरकार की कार्रवाई को पूरी तरह से सरकारी दमन माना है और उस पर से सारे आपराधिक मामले खत्म कर दिए हैं। अब सरकार की छवि क्या बन रही है? यही कि वह जनता की मदद करने वालों का उत्पीड़न करती है? इसी तरह से प्रशांत कन्नौजिया ने जो टिप्पणी की, ऐसी टिप्पणी देश में राजनेताओं के खिलाफ़ होती रहती है, लेकिन परिपक्व और समझदार पुलिस प्रशासन एवं कम्युनिकेशन टीम हमेशा दमनात्मक कार्रवाई से बचती हैं। इसी तरह से मिर्जापुर में मिडे-डे की गड़बड़ी को उजागर करने वाले पत्रकार पवन जायसवाल पर पुलिस ने जिन आधार पर कारवाई की, उसने भी सरकार तक जमीनी हकीकत पहुंचाने वालों पर सरकार की उत्पीड़क की छवि को बढ़ावा दिया।

आपकी कम्युनिकेशन टीम अगर चुस्त होती तो कभी भी इन कर्रवाइयों या इस तरह की दूसरी कर्रवाइयो को कभी न होने देती बल्कि पॉजिटिव कम्युनिकेशन के जरिए सरकार की छवि निर्माण में इनका इस्तेमाल करती। अगर सरकार ने कफील अहमद को जनता के बीच उनके योगदान के लिए सराहा होता तो वह कभी भी सरकार की छवि पर बट्टा नहीं बनते और सरकार को हाईकोर्ट के जरिए इतनी आलोचना नहीं झेलनी पड़ती। इसी तरह प्रशांत कन्नौजिया को नजरंदाज किया जा सकता था, आपकी पुलिस ने तो एक तरह से उसकी मदद की, उसे देश के एक्टिविस्ट पत्रकारों के क्लब में जगह दिलवा दी। उसकी मिडिया से लेकर सोशल मीडिया में लोकप्रियता बढ़ाने में मदद की। पवन जायसवाल को तो आपको जनता के बीच पुरस्कृत करना चाहिए था और जनता को संदेश देना चाहिए था कि हमें ऐसे पत्रकारों की जरुरत है, जो हमारे राज्य में किसी भी गलत या गैरकानूनी गतिविधि को उजागर करें।

दरअसल, आज के सोशल मीडिया के जमाने में किसी भी घटना की सच्चाई को छुपाना मुठ्ठी में पानी रोकने के बराबर है। इसलिए यह जरूरी है पॉजिटिव कम्युनिकेशन किया जाय। सरकार है तो कमियां होंगी और गलतियां भी होंगी लेकिन हम उसे उजागर करने वालों पर कार्रवाई करके सरकार की इमेज बचाने की झूठी कोशिश करते हैं और उसकी साख पर बट्टा लगा देते हैं। संवाद से बड़ी कोई भी चीज नहीं होती है। सरकार का काम है, जनता की आवाज़ सुनना न कि उनकी आवाज को दबाना। आवाज दबाने का रास्ता हमेशा सत्ता के अंत पर जाकर खत्म होता है।

इसी तरह से बहुत से जन आंदोलनों के साथ सरकार का रवैया तानाशाही वाला रहा है। इससे सरकार की छवि को तगड़ा झटका लगा है। आंदोलन लोकतन्त्र का ऑक्सीजन है। अगर इस ऑक्सीजन को खत्म करके किसी भी सरकार की सत्ता की सांस नहीं चल सकती है। यह लोकतंत्र है, यहां सरकार का मतलब एक विचारधारा को लेकर आगे बढ़ने का नहीं है बल्कि सभी विचारधाराओं को साथ लेकर चलने का है।

अब अमिताभ ठाकुर के मामले को ही लें तो उन पर लगाए गए आरोप संगीन हैं लेकिन वे अभी आरोप हैं और इस तरह के आरोप पुलिस जैसे संवेदनशील महकमों में कार्य करने वाले ऑफिसर पर लगते रहते हैं। उन पर एफआईआर दर्ज हुई थी तो पुलिस को उसकी कॉपी देने में क्या आपत्ति थी?बिना एफआईआर की कॉपी दिए जिस अपमानजनक, क्रूर और हिंसक तरह से उन्हें गिरफ़्तर किया गया, उससे उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि और भी अधिक तो खराब हुई ही, इसके साथ उत्तर प्रदेश सरकार की छवि को भी और नुकसान पहुंचा है। यह एक गलत नज़ीर है, जो उत्तर प्रदेश सरकार में घटित हुई है। उनके साथ ऐसा बर्ताव हुआ कि जैसे वे हिस्ट्रीशीटर क्रिमिनल हों और कहीं भागने वाले हों।

ऐसे मौके पर जब वह लगातार आपके खिलाफ लगातार पोस्ट लिख रहे थे और गोरखपुर से चुनाव लड़ने का एलान कर रहे थे तो उन पर इस तरह से कार्रवाई से बचा जाना चाहिए था। पुलिस की इस तरह की बर्बर कार्रवाई ने उत्तर प्रदेश की जनता के बीच उनके लिए सहानुभूति पैदा की है और उनके नेता बनने की ज़मीन को और पुख्ता किया है। आपकी पुलिस ने जोश - जोश में अमिताभ की मदद ही की है, वह भी सरकार की छवि बिगाडने की कीमत पर। अमिताभ ठाकुर की गिरफ्तारी होनी भी थी तो बेहद शांति से न कि पुलिस द्वारा इस क्रूर तरीके से लेकिन अमिताभ ठाकुर को बिना कुछ ज्यादा किए नेता बनने की उपजाऊ जमीन मिल गई। इसका पूरा श्रेय आपकी पुलिस और कम्युनिकेशन टीम को है।

मैं हमेशा से कह रहा हूं कि बेहतर कम्युनिकेशन टीम का अभाव किसी संगठन का बेड़ा गर्क कर सकती है। आजकल एग्रेसिव एक्शन अपना पांव कुल्हाड़ी पर मारने के समान होता है। यह सोशल मीडिया का जमाना है, इसलिए सच्चाई सामने आने में जरा भी देर नहीं लगती है। इसलिए सबक सिखाने के नाम पर लिया गया कोई भी एक्शन खुद के ही खिलाफ चला जाता है। इससे आपको सावधान रहने की जरूरत है।

सविनय

विनय जायसवाल

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