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लालकृष्ण आडवाणी के नाम खुला ख़त, आप शतायु हों और सौ साल तक यूं ही जीते रहें कांटे की चुभन के साथ !

-नवनीत चतुर्वेदी

आदरणीय आडवाणी जी

सादर चरण स्पर्श

आज यह ओपन लेटर मैं आपको लिख रहा हूँ, मैंने आपके वो जलवे जलाल वाले दिन भी देखे हैं, जब आप नवम्बर माह में 8 तारीख को अपने बर्थ डे के दिन नागौर जिले के कुचामन शहर में शायद 1993-94 के दौरान आए थे, वहां की जनता ने आपको चांदी का मुकुट पहनाया था और सिक्कों से तौला भी था, फिर वो सिक्के व चांदी का मुकुट आपने राम मंदिर अयोध्या निर्माण के लिए दान कर दिए थे। आज आपको इन पैसों व सोने चांदी का हिसाब मांगना चाहिए मोदी से, अगर मैं आपकी जगह होता तो आज एक प्रेस कांफ्रेंस करता और राजघाट पर अनशन पर बैठ जाता। 

समय बदला, आपने आस्तीन में सांप पाला हुआ था जिसे आप नही पहचान पाए और किसी भी आम इंसान की तरह आपकी पत्नी भी बेवकूफ घुटने में अक्ल रखने वाली थी, उनकी ड्यूटी थी कि वो आपको गलत संगत में पड़ने से रोके लेकिन नहीं रोक पाई, इसीलिए पुराने लोग काम धंधे की बातों से अपनी अपनी लुगाइयों को दूर रखते थे, ऐसा मैंने राजस्थान के बनियों महाजनों में देखा है, धंधे में वो सिर्फ अपना दिमाग लगाते है।

माफ करना आडवाणी जी, हमारे राजस्थान में एक कहावत है कि यदि सांप और सिंधी एक साथ दिख जाए तो सिंधी को मार दो, लेकिन अफसोस...मैं अब यह गुजारिश करूंगा कि आइंदा इस कहावत का प्रयोग न किया जाए। मैं इससे सहमत नहीं हूं। 

मैं सिर्फ यह कह सकता हूं कि भगवान राम कण कण में मौजूद है और वो एक कृतघ्न कपटी धूर्त से कभी पूजा स्वीकार नहीं कर सकते है, वो मर्यादा पुरूषोत्तम है और उनको तो दूर दूर तक किसी मर्यादा से कभी कोई वास्ता नही रहा है।

और जाते जाते सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि बबूल का पेड़ आपने ही बोया था वहां आम नही उगेगा, आज जो कांटा आपको चुभा है वो आपकी ही करनी का फल है, देश की 65% जनता खुले आम और बाकी चोरी छिपे त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है कि कब ये पनौती जाए, आप शतायु हों सौ साल तक यूं ही जीते रहिए कांटे की चुभन के साथ, ये प्रारब्ध भोग ही आपका स्वर्ग है और यही नरक है इसको महसूस कीजिये। यदि प्रायश्चित करने का मूड हो तो एक बार खुले में देश से माफी मांगिए। जनता माफ कर देगी । 

प्रणाम। 

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