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ट्विन टावर का दर्द, 'मी लार्ड! बिल्डर अगर मेरे अय्याश बाप थे, तो अथॉरिटी के अफसर और उन्हें नियुक्त करने वाले मंत्रियों ने मां की भूमिका निभाई'

-कृष्णदेव नारायण 


मैं चालीस मंजिल का ट्विन टावर हूं, जिसे सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आधार पर जमींदोज कर दिया गया। जैसे कोई भी व्यक्ति खुद का जनक नही हो सकता, वैसे ही मै भी खुद अपने आप बन कर खड़ा नही हो गया। मेरे निर्माण में देश की ऊर्जा और सम्पत्ति खर्च हुई। सीमेंट, बालू, सरिया, ईंट, लकड़ी, लोहा मेरे रगों में प्रवाहित हो रहा था। 


नौ मीटर के छोटे से फासले पर मै दिल्ली के समीप नोएडा में कुतुबमीनार से ऊंची हैसियत में पहुंच गया था। पास- पास हम जुड़वां भाइयों की तरह खड़े थे, सो नाम भी पड़ गया ट्विन टावर। माना मेरा जन्म नाजायज था, पर सच यह भी है कि नाजायज औलादों के जन्म में उनकी अपनी कोई गलती नही होती। कूड़े के ढेर में पाये जाने के बावजूद मुझे हमारा सभ्य समाज भले ही अनाथालय में पालता है, पर पाल लेता है, फांसी पर नहीं चढ़ाता। 


कुछ लोग दोगला या हरामी कहकर उपेक्षा की नजर से देखते हैं, तो कुछ ऐसी भी दम्पत्तियां होती हैं, जो इन्हे गोद ले लेते हैं। फांसी पर तो कदापि नही चढ़ाया जाता, पर मै निर्जीव, बेजुबान ट्वीन टावर अदालत में पूछ भी नही सका-' मी लार्ड!  मुझे बनाने वाले बिल्डर अगर मेरे अय्याश बाप थे, नोएडा विकास प्राधिकरण के आला अफसर और इनकी नियुक्ति करने वाले मंत्रियों ने मां की भूमिका निभायी। मेरा दोगलापन प्रमाणित होने के साथ ही मेरे अनैतिक माता-पिता भी चिन्हित हुए ना। सजा देनी थी, उनको सजा देते, कड़ी से कड़ी से सजा देते। मै चूं तक न करता, लेकिन आप ने आदमी होने के नाते आदमियों को बचा लिया, थोड़ी सी सजा उन्हे दी और मुझे फांसी पर लटका दिया। एक बार पूछा तक नही-बता तेरी आखिरी इच्छा क्या है?, खुंखार जानवरों की तरह चिड़ियाघर में ही डाल देते, अधिग्रहित कर लेते। सरकारी दफ्तर बना लेते, सरकार के चहेते कार्पोरेट्स घरानो को दे देते। कुछ भी करते देश में पैदा किये गये सीमेंट, सरिया, ईंटों की लाज भी रह जाती और मै भी देश के विकास का हिस्सा बन जाता, पर हुजूर! आप ने तो मुझे सुना ही नही और सुनते भी कैसे मै निर्जीव जो ठहरा।' 


'हां आप मुझे मेरे तर्क से ही निरुत्तर जरूर कर सकते हैं और वह यह कि -' बेटा ट्वीन टावर! तुम जब निर्जीव हो तो तुम्हारी हत्या कैसे हो सकती है?'


वैसे यह सच है कि एक छोटे से पेड़ के कटने पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों को भी मेरी असामायिक मृत्यु पर जरा भी कष्ट नही हुआ। अरे सोशल मिडिया पर भाई साहब ' विनम्र श्रद्धांजलि' ही लिख देते, तो आप का चला जाता, मै दोबारा खड़ा तो होने से रहा। 


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