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बापू और नेहरू की आत्माओं के मध्य पत्राचार : गांधी की चिट्ठी नेहरू का जवाब, नेहरू की चिट्ठी गांधी का जवाब


-संजीव जायसवाल 'संजय' 

बापू का खत नेहरू के नाम  (1)               

प्रिय जवाहर,

आशीर्वाद। आशा है तुम कुशल पूर्वक होगे और अपने नाती-पोतों की तरक्की देख कर खुश हो रहे होगे । मेरा क्या है ? जीवन भर संघर्ष किया और अब भी शांति के लिये जद्दोजहद कर रहा हूं । एक बात बताओ ? राज तुमने किया, घाट-घाट का पानी भी तुमने ही पिया फिर मेरी समाधि का नाम ‘राजघाट’ क्यों रख दिया ? क्या तुम्हें मालूम न था कि जहां राज होगा वहां ताज होगा और जहां ताज होगा वहां कांटे होना लाजमी है । इन 71 वर्षो में अपने ही बंदो ने वहां इतने कांटे बो दिये हैं कि हर पल लहुलुहान रहता हूं । पहले वहां आकर कसमें खाने का फैशन था । ऐसे-ऐसे बगुले आकर कसमें खाते थे कि दिल तड़प कर रह जाता था । मगर अब तो वहां धरना-प्रर्दशान और नाच-गाने का भी फैशन शरू हो गया है । ( क्या हमने तुमने ‘स्वराज’ का ऐसा ही रूप देखना चाहा था ?) । अगर यही हालात रहे तो आगे और क्या-क्या होगा सोच कर ही कलेजा कांप उठता है । कभी-कभी तो जी में आता है कि अपनी लाठी उठाऊं और सुधार दूं सबको । मगर क्या करूं अहिंसा का व्रत ले रखा है इसलिये खून के घूंट पी कर रह जाता हूं । कोई एक गाल पर तमाचा मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो यह सिद्वान्त मैनें ही बनाया था लेकिन अगर कोई छाती पर चढ़ कर मूंग दले तो क्या किया जाये ? इस बारे में जब जीते-जी नहीं सोचा तो अब क्या सोचूं ?

 तुम तो शुरू से समझदार थे । इसलिये अपने घर का नाम ‘शांति-वन’ रखवा दिया। अब ‘वन’ की ओर तो कोई भूल कर भी नहीं जाना चाहता इसलिये तुम आराम से वहां आराम फरमा रहे हो । लेकिन कभी मेरे बारे में भी तो सोचो ? तुम्हें याद होगा कि मैं उतने ही वस्त्र पहनता था जितने किसी गरीब को मरने के बाद मयस्सर होते हैं। लेकिन अब तो मेरी वह एकलौती चादर भी तार-तार हो चुकी है । समझ में नहीं आता कि क्या   करूं ?


तुमने अपने नोटों पर मेरी फोटो छपवा दी थी उसके कारण मेरा जीना तो छोड़ो मरना भी हराम हो गया है । ऐसे-ऐसों की संगत में रहना पड़ता है कि कलेजा फटने लगता है । ऐसी-ऐसी जगहों पर जाना पड़ जाता है कि आंखे शर्म से झुक जाती हैं । मेरी तो अब कोई सुनता नहीं लेकिन अगर हो सके तो मेरे 2 काम करवा दो । पहला मेरे घर का नाम ‘राजघाट’ से बदलवा कर ‘सेवा-घाट’ या ‘शांति-घाट’ जैसा कुछ करवा दो ताकि मैं बची-खुची चैन से काट सकूं । दूसरा, अपने नोटों से मेरी फोटो हटवा दो ताकि मेरी आखें और शर्मसार होने की जिल्लत से बच सकें । शेष कुशल है । अपनी खैर-खबर देते रहना ।


तुम्हारा

बापू 


नेहरू का जवाब बापू के नाम (2)

आदरणीय बापू, 

सादर प्रणाम । आपका खत मिला । बहुत अपनापन मिला । मगर मैं आपका काम नहीं करवा सकता । क्योंकि इस देश में अब मेरी भी कोई नहीं सुनता । यहां सिर्फ और सिर्फ आपकी ही सुनी जाती है । इसलिये अगर हो सके तो अपने दम पर अपना काम करवा लीजये । 

आपका,                                                                         

जवाहर


बापू की शिकायत (3)

प्रिय जवाहर, सदा प्रसन्न रहो । मेरा-तुम्हारा मजाक का रिश्ता कभी नहीं रहा । मैनें हमेशा तुम्हारा भला ही चाहा है फिर मुझ बूढ़े के साथ मजाक क्यों करते हो  ? अब मेरे में दम ही कहां बचा जो मैं अपने दम पर अपना काम करवा पाऊंगा ?

तुम्हारा

मोहन दास


नेहरू का स्पष्टीकरण (4)

आदरणीय बापू,

सादर नमन । 

मेरी बातों से आपको दुख हुआ इसके लिये क्षमा-प्रार्थी हूं । दरअसल मैं आपसे खुल कर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था । यकीन मानिये इस देश में अब सारा काम सिर्फ आपके ईशारे पर ही होता है । क्योंकि जब तब आपकी वह वाली फोटो न दिखलायी जाये जिसे आप हटवाने की बात कह रहे हैं तब तक कहीं कोई पत्ता भी नहीं हिलता । इसलिये अगर आपको अपनी फोटो हटवानी है तो अपनी करारी फोटो दिखला कर हटवा लें । यही एकमात्र उपाय है । शेष फिर कभी....... 

आपका

जवाहर लाल नेहरू 

                                                  (5)    

 ‘‘ हे - राम....’’

(खत पढ़ कर राष्ट्रपिता की आत्मा बेहोश हो जाती है ।)

     

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