-अजय एसएन सिंह
जीवन में किसी को भी बेकार या छोटा नहीं समझना चाहिए। कौन, कहां, कब देवदूत बन जाए, कोई नहीं जानता। कई बार एक आम आदमी आपकी वो मदद कर सकता है, जो हो सकता है, कोई तथाकथित बड़ा आदमी न कर पाए। मैं एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। कुछ दिनों पहले मैं नौकरी के लिए टेस्ट देने दिल्ली आया था। घर लौटने के समय ट्रेन में तत्काल टिकट उपलब्ध नहीं था और मैं किसी मित्र को इतनी छोटी सी बात के लिए परेशान नहीं करना चाहता था। वो भी तब, जब विकल्प मौजूद हों। मैंने दिल्ली से प्रयागराज के लिए बस का टिकट बुक कराया। बस कश्मीरी गेट, नई दिल्ली से प्रयागराज के लिए चली।
कश्मीरी गेट पर ही मैंने कंडक्टर को उसी की उम्र के (20-22 साल के) एक मलीन से लड़के से बहस व ना-नुकुर करते देखा। अंत में कंडक्टर बोला, अच्छा ला दे, लेकिन इतने में सीट नहीं मिलेगी। फर्श पर ही बैठकर चलना पड़ेगा। लड़का ख़ुशी-ख़ुशी बस में घुस आया। संयोग से वो मेरी सीट के बगल ही आकर फर्श पर बैठ गया।
बस थोड़ी देर ही चली होगी। अभी शायद दिल्ली-हरियाणा की किसी सीमा पर ही थी। रात के लगभग 1 बज रहे थे। इसी बीच बस का पिछला टायर फट गया। पीछे दोनों तरफ दो-दो टायर लगे थे इसलिए कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई। ड्राइवर और कंडक्टर लगभग आधे-पौन घंटे तक मशक्कत करते रहे, लेकिन बात न बनी। शायद कुछ और तकनीकी गड़बड़ी थी। बस ठीक करने के लिए उसका इंजन बंद किया गया था, इसलिए एसी भी बंद थी। नतीज़न, गर्मी से यात्री बेहाल होने लगे। ज़्यादातर यात्री बाहर उतर आए। बाहर निकलकर एक्सप्रेस-वे पर टहलने लगे।
लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद, दबे मन से ड्राइवर ने कहा, बस बिगड़ गई। आज नहीं बन पाएगी। आपलोग किसी दूसरी बस से चले जाइए। आप सबका पैसा ऑनलाइन रिफंड हो जाएगा। ये सुनते ही सारे यात्री भड़क गये। ऐसे कैसे होगा? ये कौन सी बात हुई? इतनी रात को बीच रास्ते में लाकर रोक दिये! महिलाएं भी थीं, बच्चे भी थे। इसलिए सभी लोग भड़क गये! उसे घेर लिये।
ड्राइवर बोला, इसमें मेरी क्या ग़लती! यहां कोई मिस्त्री इतनी रात को तैयार नहीं हो रहा है। आज हमारा पुराना कंडक्टर भी नहीं है। वो मिस्त्री भी था। इससे तो हो ही नहीं पा रहा है। और कोई मिस्त्री इतनी रात को तैयार नहीं हो रहा है। सब सुबह आने को बोल रहे हैं। दिल्ली से बस आएगी भी तो भी भोर हो जाएगी। कोई रास्ता न निकलता देख मैंने कहा, मिस्त्री से पूछो, इस समय आने का पैसा कितना लेंगे। हम लोग भी थोड़ा-थोड़ा मिलाकर दे देंगे। वो आए तो सही। इसपर सभी यात्री भी तैयार हो गये। लेकिन मिस्त्री ने अब नंबर ही ऑफ़ कर लिया था।
सब व्याकुल थे। कोई बस वाला भी बस रोक नहीं रहा था। सब हैरान थे। सब प्रयास करना शुरू किये। कोई बोलता, रुको, मेरे मामा के परिचय के एक लोग यहां के एसएचओ हैं। कोई किसी परिचित को फ़ोन लगा रहा है। कोई कहीं फ़ोन लगा रहा है। लेकिन कोई काम न आया।
इतने में वो लड़का आंख मलते हुए बस से निकला। मामले को समझा। फिर बोलता है, मुझसे बताना चाहिए ना! दरअसल वह ख़ुद भी एक मिस्त्री था! सबकी आंखें चमक उठीं। और देखते ही देखते, 20-25 मिनट में उसने टायर बदल दिया। शायद कोई एक पुर्जा भी टूटा था। उसे भी दूसरी तरफ के टायर की तरफ जाकर कुछ निकालकर, इधर लगाकर ठीक कर दिया।
उसके जागने के आधे घंटे के अंदर बस फ़ुल स्पीड में चल रही थी। ये वही लड़का था, जिसे कंडक्टर ने झिड़कते हुए बस में एंट्री दी थी। मैं उसे स्नेहिल नज़रों से देखकर मुस्कुरा रहा था। आज की रात का वो हीरो बन गया था! इस बार बस में चढ़ने पर हम एक-दो यात्रियों ने उसे सीट भी दिलवाई। अब वो फर्श पर नहीं बैठा था।
इसलिए जीवन में किसी को भी नाकारा नहीं समझना चाहिए। बड़े से बड़ा जहाज भी छोटे-छोटे पुर्जों व स्क्रू से बना होता है। जो काम बड़े पुर्जे कर पाएंगे, वो एक स्क्रू नहीं कर पाएगा लेकिन जो काम एक छोटा सा स्क्रू कर सकता है, वो भी बड़ा पुर्जा नहीं कर पाएगा। अगर किसी संवेदनशील जगह के कुछ एक स्क्रू ख़राब हो जाएं, तो बड़ी दुर्घटना हो सकती है। इसलिए एक समझदार व्यक्ति या अच्छा प्रशासक वो होता है, जो यह जानता है कि किस पुर्जे व किस स्क्रू का कहां, कब, कैसे इस्तेमाल करना है। कोई भी उपयोगी हो सकता है।