- नितिन ठाकुर
अब देखा नहीं जा रहा। कल रात एक-डेढ़ बजे तक सड़कों पर भटकते लोगों की हालत देखी। सर्दी पड़ने लगी है और लोगों को अगली सुबह दफ्तर भी जाना है लेकिन बच्चों को घर में अकेला सोते छोड़ पैसे निकालने के लिए एटीएम तलाश रहे हैं। खुद तो किसी तरह काम चला लें मगर बच्चों की ज़रूरतें कैसे टाल दें। पांच दिनों से मच रहे पैसे-पैसे के शोर से अब बोरियत होने लगी है पर जेटली जी ने कल कह दिया कि दो हफ्ते स्थिति सामान्य होने में और लगेंगे। सभी तो जानते हैं कि दो हफ्ते से ज़्यादा लगनेवाले हैं। उन्होंने तो कह दिया पर जिनकी जेब में चिल्लर भी खत्म होने को हैं उनका पेट बयान से कैसे भरे...


मैंने फैसला किया था कि सरकार की इस स्कीम को पहले समझूंगा और फिर तारीफ या बुराई की जाएगी। पांच ही दिनों में समझ आने लगा है कि ये सरकार का कालेधन पर आनन-फानन में लिया फैसला नहीं बल्कि पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने की एक चाल भी है। क्या आपको याद है कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर राजन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या थी? राजन ने बैंकों को मजबूर कर दिया था कि वो बड़े पूंजीपतियों को बांटे गए कर्ज़ की उगाही करें।
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एनपीए हो चुके या मुर्दा हो चुके पैसे को उन्होंने बैंकों का कान उमेठ कर बैलेंस शीट पर ज़िंदा कर दिया था। छोटा लोन लेनेवाला आदमी तो पैसा चुका रहा था लेकिन बड़ी मछलियों ने बैंकों का पैसा मार रखा था। अब इस सरकार ने कालेधन और राष्ट्र के नाम पर लोगों का सोना और बचत बैंकों में जमा कराने की चाल चली है। लोगों को बैंकों से मामूली फायदा भले मिल जाए लेकिन असल में सरकार उनके सोने और बचत को एक बार फिर पूंजीपतियों में कर्ज़ के तौर पर बांटने की कवायद ही कर रही है। गोल्ड मोनेटाइजेशन हो या अब करेंसी बदलने की स्कीम.. क्या वाकई इससे कालाधन खत्म हो जाएगा? अगर हो भी रहा है तो कितने बड़े स्तर पर?
सरकार ने तो वादा विदेश से कालाधन लाने का किया था और उन लोगों की लिस्ट भी मंगाई थी जिनका पैसा बाहर जमा है पर उस मामले का हालिया स्टेटस क्या है? क्या सरकार ने बताने की ज़रूरत समझी या फिर लोगों ने पूछा?रामदेव भी तो विदेशों में जमा हुए कालेधन पर प्रवचन देते थे.. अब क्यों नहीं पूछ रहे? बड़ी ही चालाकी से सरकार ने विदेश से कालेधन की वापसी को सिर्फ कालेधन की वापसी में तब्दील कर दिया है। ये पैसा काला था या सफेद लेकिन किसी ना किसी रूप में देश की इकोनॉमी में चल रहा था। मैं उसका बचाव नहीं कर रहा हूं लेकिन उस बड़ी रकम का क्या जो पूंजीपतियों और माफियाओँ ने विदेशी बैंकों में जमा कर रखी है?
सरकार के पास उस पैसे को वापस देश की इकोनॉमी में लाने की क्या स्कीम है और वादा तो विदेश से कालेधन का था तो उस पर सरकार के बोल क्यों नहीं फूट रहे? चिंदीचोरों का शिकार करके कालेधन के मामले पर बढ़त बनाने और चालाकी से लोगों का पैसा बैंकों के हवाले करके पूंजीपतियों को फिर से कर्ज़ बांटने की साज़िश सिर्फ उन्हें नहीं दिखेगी जिनकी आंखों पर प्रधानमंत्री ने 'राष्ट्रवाद' की पट्टी बांधी है। एक महीने तक आवाम की ऊर्जा को बैंकों और एटीएम के सामने खपाना किस तरह की स्कीम है? करीब 87 फीसद पैसा जिस करेंसी में था उसे आपने खत्म तो कर दिया लेकिन हफ्ते- दो हफ्ते में आप उसे नए सिरे से छाप कर सौ करोड़ लोगों तक पहुंचाएंगे कैसे?
अलग से तो छोड़िए आपके पास बेसिक बैक अप भी नहीं। परचून वाला चार दिन उधार पर सामान दे देगा लेकिन उसे भी तो माल लाना है। वहां उधारी नहीं चल रही, नतीजतन सामान दुकानों पर आना बंद हो गया है। दुकानों पर सामान नहीं पहुंच रहा है तो किल्लत के चलते दाम बढ़ रहे हैं। ऐसे में एक चीज़ महंगी हो रही है तो अफवाह चार चीज़ों के महंगे होने की उड़ने लगी है। दिल्ली और छतरपुर में लोगों ने धैर्य खो दिया। लुटेरों की तरह खाने-पीने के सामान पर टूट पड़े। इस भीड़ में मुझे कोई धन्ना सेठ नहीं दिखा।
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मुंबई में करेंसी की समस्या ने एक दंपति का बच्चा इलाज ना हो पाने की वजह से लील लिया। दिल्ली के गोल डाकखाने के बाहर एक 73 साल के बुुजुर्ग को दो घंटे लाइन में लगकर पैसा निकालना पड़ा.. वो भी उस पांव पर जिसके ऑपरेशन के लिए उन्हें पैसे निकालने पड़े। बाहर निकले तो पत्रकार ने उनसे परेशानी पूछी.. फफक फफक कर रोने लगे। जिनके बच्चों की शादी इस महीने है उनका तो हाल पूछिए ही मत। अस्पताल के बाहर मरीज़ों और तीमारदारों की भीड़ एक ही दिन देखी ... दोबारा देखनी की हिम्मत जुटा नहीं सका।
क्या सामान लूटती बदहवास इस भीड़ को ऐसी स्थिति में लाने की ज़िम्मेदार सरकार की हीला-हवाली नहीं है। हर बात पर देश की दुहाई देकर आप अपने छेद कब तक छिपाने वाले हैं? जिस दिन लोगों का भरोसा आपकी बातों से उठ गया, याद रखिए ये पूरी पीढ़ी निराशा के अंधेरे में डूब जाएगी और इसके ज़िम्मेदार सिर्फ आप होंगे। सनद रहे कि उस दिन बच आप भी नहीं पाएंगे। [अगर आप भी लिखना चाहते हैं कोई ऐसी चिट्ठी, जिसे दूसरों तक पहुंचना चाहिए, तो हमें लिख भेजें- merekhatt@gmail.com. हमसे फेसबुक, ट्विटर और गूगलप्लस पर भी जुड़ें]
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