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हिमाचल के भाजपा नेता चेतन बारागटा के नाम खुला खत, अगर आप सच में बागवानों की पीड़ा समझते तो खुद भी हमारे साथ सड़क पर संघर्ष कर रहे होते

आदरणीय श्री चेतन बारागटा जी,

एक फेसबुक चैनल पर आपका एक शॉर्ट इंटरव्यू देखा। जिसमे आपने प्रदेश भर में हो रहे संयुक्त किसान मंच के आंदोलन और सेब बागवानाें की बीस सूत्रीय मांगों को लेकर अपना पक्ष रखा। आपका कहना है कि संयुक्त किसान मंच की शिमला रैली के बाद प्रदेश सरकार ने बीस सूत्रीय मांग रखने वाले बागवानों से मीटिंग की। इसके बाद आपने "कांग्रेस और लेफ्ट के मित्र" शब्दों पर जोर देते हुए कहा कि वह भी बुलाए गए थे। और इन मुद्दों पर काफी चर्चा हुई और छः मांगे मान ली गई है। और कुछ मांगों को लेकर काम जारी है और कुछ मांगे आपको "अवास्तविक ( Unrealistic) और करने योग्य (doable) नहीं है।" और बाकी मैक्सिमम मांगे पूरी कर दी है।

महोदय मैं आपसे यह पूछना चाहता हूं कि बीस सूत्रीय मांग पत्र में ऐसी कौन सी मांग है जो अवास्तविक ( Unrealistic) और करने योग्य (doable) नहीं है? और क्यों नहीं है? आपकी सरकार ने छः मांगों पर सहमति जताई है लेकिन जो बाकी 14 मांगें हैं, उनमें कौन सी मांग आपकी सरकार पूरी नहीं कर सकती और अवास्तविक है? क्या एमआईएस के तहत सेब और अन्य फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देना, या एपीएमसी एक्ट 2005 को सही तरीके से लागू करना? बैरियरों पर मार्केट फीस वसूली बंद हो, सहकारी समिति को सीए स्टोर बनाने के लिए 90 फीसदी अनुदान मिले और भूमि अधिग्रहण कानून 2013 लागू किया जाए। अगर यह सब आपको undoable और unrealistic लगती है तो बताइए कैसे? 

इंटरव्यू के अंत में आप कहते हैं, मैं स्वर्गीय श्री नरेंद्र बारागटा जी का बेटा हूं, एक बागवान हूं और बागवानों की पीड़ा समझता हूं। तो आपसे सीधा सवाल है आप पराला मंडी में सेब बेचने गए। आमतौर पर किसी बागवान के साथ कोई कैमरामैन तो होता नहीं है लेकिन आपके साथ था और उस कैमरा में आपके सेब की बोली की वीडियो रिकॉर्ड हो गई जो कि सोशल मीडिया पर आपने अपलोड की। उसमे मैंने पाया की आपके सेब की जब बोली लगाई गई तो आपका सेब उच्चतम बोली से 100 रुपए कम पर बेचा गया! क्या तब आपको पीड़ा नहीं हुई? आपने यह जानने की कोशिश या विरोध नहीं किया कि आखिर बोली से 100 रुपए की छूट किस कानून के तहत आढ़तियों द्वारा दी जा रही है? ऐसी कैसी पीड़ा समझते हैं आप हमारी? 

महोदय आपके मुताबिक इस रैली और मीटिंग के लिए लेफ्ट और कांग्रेस के मित्र बुलाए गए थे। मैं आपको सही करते हुए बता दूं कि  इस रैली में किसी को कोई निमंत्रण नहीं दिया गया था। जो भी किसान बागवान है या इस पृष्ठभूमि से संबंध रखता है वह खुद इस प्रदर्शन में प्रदेश सरकार के किसान विरोधी रवैए का विरोध करने और अपनी जायज़ मांगों को पूरा करने के समर्थन में सड़क पर उतरा था। राजनीतिक विचाराधाराओ को दरकिनार करके दशकों बाद सेब बागवान अपने हक की आवाज उठाकर एक साथ एक मंच तले इकट्ठा हुआ है और आप इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे है। जैसे आप भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता होकर एक बागवान है और "बागवानों की पीड़ा समझते हैं" वैसे ही वो कांग्रेसी और कॉमरेड जन भी बागवानी की पृष्ठभूमि से आते हैं और बागवानों की पीड़ा महसूस करते है। फर्क इतना है कि वह किसान बागवान बनकर बागवानों के साथ संघर्ष में उतरे है और आप उस संघर्ष में राजनीतिक रोटियां सेकने में जुटे है। अगर आप सच में किसान बागवानों की पीड़ा समझते तो आप यह सब न कहते और बागवानों के साथ सड़क पर संघर्ष कर रहे होते। 

आपसे मेरे सीधे सवाल है। जब उपचुनावों में आप निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर वोट मांगने आए थे तब आप बागवानी को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते थे। आपका चुनाव चिन्ह भी सेब था और "हम सेबवाले है" आपका नारा। तो आज ऐसा क्या हो गया की वापिस पार्टी में शामिल होते ही आपकी सेब बागवानी की बड़ी बड़ी बाते हवा हो गई और आप असली सेब वालों की खिलाफत कर रही सरकार के पक्ष में हो गए? आप हरवक्त मीडिया में आ कर स्वर्गीय श्री नरेंद्र ब्रागटा जी के सपनो की बात करते हैं। प्रदेश में बागवानी को लेकर आपके अपने सपने क्या है उसके बारे में भी बताइए।

यह संयुक्त किसान मंच कोई राजनीतिक मंच नहीं है और न ही  कोई इस मंच का इस्तेमाल करके अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा कर रहा है। यहां सब बागवान है और बागवान की हैसियत से ही अपने हितों की रक्षा के लिए जुड़े हैं। हमने अपनी मांगे मनवाकर कोई चुनाव नही लड़ने। यह सब हमारे लिए नहीं है, हम मिट्टी से खेलने वाले उससे सोना पैदा करने वाले लोग हैं। हमें यही काम भाता है। कृपया आप "फूट डालो राज करो" की नीति अपनाकर इस आंदोलन को कमजोर करने की चेष्टा न करें। क्योंकि प्रदेश का किसान बागवान राजनीति करने वालों और हक की लड़ाई लड़ने वालों  में फर्क करना भली भांति समझता है। 

प्रशांत प्रताप सेहटा

- एक गर्वित बागवान

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