सर जनरल बख्शी,
मैंने टीवी नही देखा। न्यूज़ देखना छोड़ चुका हूँ। पहले तो इन मुर्गा लड़ाई में आस्था नही रही और दूसरी आजकल के घटनाक्रम न्यूज़ में देख मन विचलित होता है। पर सोशल मीडिया के जरिये बना हुआ हूँ। बना भी रहूँगा। बचपन से मैंने तिरंगे को आस्था के रूप में देखा है। जब बचपन में 15 अगस्त और 26 जनवरी के भाषण पढ़ता या सुनता था तो आश्चर्य होता था की देशभक्ति की कसम क्यों खानी पड़ती है। देश के मामले में तो आप स्वतंत्र हैं। देश है तो आप हैं।

अभी थोड़ी देर पहले किसी पेज से पता चला कि आप किसी न्यूज चैनल पर रो दिए। मैं जानता हूँ कि एक सैनिक कैसे रोता है। रोते हुए देखा भी है। और यह बहुत शर्मनाक बात है सर। देश के लिए भी, मेरे लिए भी। तमाम दिक्कतें और आरोप झेलकर एक सैनिक सीमा पर इसलिए खड़ा है क्योंकि वो जानता है कि सीमा के उस पार दुश्मन हैं, जिनसे उसे अपने लोगों को बचाना है।
आज जब वन्दे मातरम् कहना। भारत माता की जय बोलना। तिरँगा फहराना। भारतीय नहीं, संघी होने की पहचान हो गया है। आपकी मौत का जश्न मनाना और आतंकवादी की बरसी मनाना प्रगतिशीलता है। सॉफ्ट टारगेट किया जा रहा कि वो वहां मौजूद था पर उसने वैसा किया नहीं।
न्यायिक व्यवस्था भी हत्या लग रही। राष्ट्रवाद को मुस्लिम और दलित विरोधी समझा जा रहा है, तो आपका रोना जायज है। मैं आपसे माफ़ी नहीं माँगूंगा। ये जानते हुए भी कि मैं अपराधी हूँ। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हो रहे इन तमाशों का साक्षी रहा। पर मुझे क्या करना है, सोचकर मैंने इग्नोर किया।
भारत की बर्बादी के नारे एक दिन में नहीं लगे। तब लगे जब मैं रोटी कपड़ा मकान की चिंताओं में राष्ट्र का सरोकार भूल गया। हो सकता है आगे भी लगें। पर मैं नहीं लगाऊंगा और आपको और रोने के मौके भी नहीं दूँगा। मैं नहीं जानता मुझे क्या करना है। पर आप निराश मत होइए। आपने जिस तिरंगे की रक्षा की है। वो मेरे सामने तो नहीं झुकेगा। मेरे जीते जी तो नहीं।
वन्दे मातरम्
किशोर वैभव अभय
मैंने टीवी नही देखा। न्यूज़ देखना छोड़ चुका हूँ। पहले तो इन मुर्गा लड़ाई में आस्था नही रही और दूसरी आजकल के घटनाक्रम न्यूज़ में देख मन विचलित होता है। पर सोशल मीडिया के जरिये बना हुआ हूँ। बना भी रहूँगा। बचपन से मैंने तिरंगे को आस्था के रूप में देखा है। जब बचपन में 15 अगस्त और 26 जनवरी के भाषण पढ़ता या सुनता था तो आश्चर्य होता था की देशभक्ति की कसम क्यों खानी पड़ती है। देश के मामले में तो आप स्वतंत्र हैं। देश है तो आप हैं।

अभी थोड़ी देर पहले किसी पेज से पता चला कि आप किसी न्यूज चैनल पर रो दिए। मैं जानता हूँ कि एक सैनिक कैसे रोता है। रोते हुए देखा भी है। और यह बहुत शर्मनाक बात है सर। देश के लिए भी, मेरे लिए भी। तमाम दिक्कतें और आरोप झेलकर एक सैनिक सीमा पर इसलिए खड़ा है क्योंकि वो जानता है कि सीमा के उस पार दुश्मन हैं, जिनसे उसे अपने लोगों को बचाना है।
आज जब वन्दे मातरम् कहना। भारत माता की जय बोलना। तिरँगा फहराना। भारतीय नहीं, संघी होने की पहचान हो गया है। आपकी मौत का जश्न मनाना और आतंकवादी की बरसी मनाना प्रगतिशीलता है। सॉफ्ट टारगेट किया जा रहा कि वो वहां मौजूद था पर उसने वैसा किया नहीं।
न्यायिक व्यवस्था भी हत्या लग रही। राष्ट्रवाद को मुस्लिम और दलित विरोधी समझा जा रहा है, तो आपका रोना जायज है। मैं आपसे माफ़ी नहीं माँगूंगा। ये जानते हुए भी कि मैं अपराधी हूँ। अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हो रहे इन तमाशों का साक्षी रहा। पर मुझे क्या करना है, सोचकर मैंने इग्नोर किया।
भारत की बर्बादी के नारे एक दिन में नहीं लगे। तब लगे जब मैं रोटी कपड़ा मकान की चिंताओं में राष्ट्र का सरोकार भूल गया। हो सकता है आगे भी लगें। पर मैं नहीं लगाऊंगा और आपको और रोने के मौके भी नहीं दूँगा। मैं नहीं जानता मुझे क्या करना है। पर आप निराश मत होइए। आपने जिस तिरंगे की रक्षा की है। वो मेरे सामने तो नहीं झुकेगा। मेरे जीते जी तो नहीं।
वन्दे मातरम्
किशोर वैभव अभय